एक कन्या के भ्रूण की अपनी माँ से पुकार

 एक कन्या के भ्रूण की अपनी माँ से पुकार


रचना  - गर्भ में ना मार ओ मैया                                 

तर्ज - आजा कलयुग में लेके अवतार.....

गर्भ में ही मुझको ना मार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !

मैंने गर्भ में ही मैया, कितने सपने संजोये हैं !
तेरा ये फैसला सुन, तेरे अपने ही रोये हैं !
काहे तू करती अत्याचार ओ मैया
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !
गर्भ में ही मुझको ना मार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !

पला था मैया तेरा, बेटा जिस कूख में !
मैं भी पल रही मैया, उसी तेरी कूख में !
फिर मुझे क्यों दिया दुत्कार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !
गर्भ में ही मुझको ना मार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !

आज बेटा - बेटी दोनों, एक ही समान है !
मानता ये आज का, सारा ही जहान है !
फिर तूने क्यों न दिया मुझे सम्मान ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !
गर्भ में ही मुझको ना मार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !

कुछ लालची ये डॉक्टर देखो, कितने अत्याचारी हैं !
आज मेरी तो कल, किसी और की भी बारी है !
अपनी बेटी की सुनले पुकार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !
गर्भ में ही मुझको ना मार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !

मुझे भी मैया इस, जग में तो आने दे !
माँ - बाप का नाम जग में, मुझे भी चमकाने दे !
करती हूँ तुझसे मैं ये इकरार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !
गर्भ में ही मुझको ना मार ओ मैया,
मुझे भी दिखादे ये संसार ओ मैया !


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